"ये गर्म रात ये सेहरा निभा के चलना है / अहमद कमाल 'परवाज़ी'" के अवतरणों में अंतर
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ये गर्म रेत ये सहरा<ref>जंगल, मैदान, रेगिस्तान</ref> निभा के चलना है | ये गर्म रेत ये सहरा<ref>जंगल, मैदान, रेगिस्तान</ref> निभा के चलना है | ||
− | सफ़र | + | सफ़र तवील<ref>लम्बा |
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बस इस ख़याल से घबरा के छँट गए सब लोग | बस इस ख़याल से घबरा के छँट गए सब लोग | ||
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वो अपने हुस्न की ख़ैरात<ref>दान</ref> देने वाले हैं | वो अपने हुस्न की ख़ैरात<ref>दान</ref> देने वाले हैं | ||
− | तमाम जिस्म को कासा<ref>प्याला</ref> बना के | + | तमाम जिस्म को कासा<ref>प्याला</ref> बना के चलना है |
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09:20, 24 सितम्बर 2010 का अवतरण
ये गर्म रेत ये सहरा<ref>जंगल, मैदान, रेगिस्तान</ref> निभा के चलना है
सफ़र तवील<ref>लम्बा
</ref> है पानी बचा के चलना है
बस इस ख़याल से घबरा के छँट गए सब लोग
ये शर्त थी के कतारें बना के चलना है
वो आए और ज़मीं रौंद कर चले भी गए
हमें भी अपना खसारा<ref>हानि, क्षति, नुक़सान</ref> भुला के चलना है
कुछ ऐसे फ़र्ज़ भी ज़िम्मे हैं ज़िम्मेदारों पर
जिन्हें हमारे दिलों को दुखा के चलना है
शनासा<ref>परिचित, जानकार, वाक़िफ़</ref> ज़हनों पे ताने असर नहीं करते
तू अजनबी है तुझे ज़हर खा के चलना है
वो दीदावर<ref>पारखी, जौहरी</ref> हो के शायर या मसखरा कोई
यहाँ सभी को तमाशा दिखा के चलना है
वो अपने हुस्न की ख़ैरात<ref>दान</ref> देने वाले हैं
तमाम जिस्म को कासा<ref>प्याला</ref> बना के चलना है