भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"आह! / गुलज़ार" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKRachna |रचनाकार=गुलज़ार |संग्रह = पुखराज / गुलज़ार }} {{KKCatNazm}} <poem> ठंडी साँस…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
15:18, 25 सितम्बर 2010 के समय का अवतरण
ठंडी साँसे ना पालो सीने में
लम्बी सांसों में सांप रहते हैं
ऐसे ही एक सांस ने इक बार
डस लिया था हसी क्लियोपेत्रा को
मेरे होटों पे अपने लब रखकर
फूँक दो सारी साँसों को 'बीबा'
मुझको आदत है ज़हर पीने की