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"आईनों पे जमीं है काई लिख / गौतम राजरिशी" के अवतरणों में अंतर
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− | + | रात ने जाते-जाते क्या कह डाला था | |
− | + | सुब्ह खड़ी है जाने क्यूं शरमाई, लिख | |
− | + | किसकी यादों की बारिश में धुल-धुल कर | |
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− | + | रूहों तक उतरे हौले-से बात कहे | |
− | + | कोई तो अब ऐसी एक रुबाई, लिख | |
− | + | छंद पुराने, गीत नया ही कोई रच | |
− | + | बूढ़े बह्र पे ग़ज़लों में तरुणाई लिख | |
− | + | ''(हंस, सितम्बर 2010)'' | |
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16:45, 26 सितम्बर 2010 का अवतरण
आईनों पर आज जमी है काई, लिख
झूठे सपनों की सारी सच्चाई, लिख
जलसे में तो खुश थे सारे लोग मगर
क्या जाने क्यूं रोती थी शहनाई, लिख
साहिल के रेतों पर या फिर लहरों पर
इत-उत जो भी लिखती है पुरवाई, लिख
रात ने जाते-जाते क्या कह डाला था
सुब्ह खड़ी है जाने क्यूं शरमाई, लिख
किसकी यादों की बारिश में धुल-धुल कर
भीगी-भीगी अब के है तन्हाई, लिख
रूहों तक उतरे हौले-से बात कहे
कोई तो अब ऐसी एक रुबाई, लिख
छंद पुराने, गीत नया ही कोई रच
बूढ़े बह्र पे ग़ज़लों में तरुणाई लिख
(हंस, सितम्बर 2010)