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"किताबों मे‍ मेरे फ़साने ढूँढते हैं / फ़राज़" के अवतरणों में अंतर

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तेरे शहर में मैख़ाने ढूँढते हैं ।
 
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हम तो रोने के बहाने ढूँढते हैं ।
  
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उनकी आंखों को यूं ना देखो ’फ़राज़’,
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नए तीर हैं, निशाने ढूंढते हैं ।
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20:47, 26 सितम्बर 2010 के समय का अवतरण

किताबों में मेरे फ़साने ढूँढते हैं,
नादां हैं गुज़रे ज़माने ढूँढते हैं ।

जब वो थे तलाशे-ज़िंदगी भी थी,
अब तो मौत के ठिकाने ढूँढते हैं ।

कल ख़ुद ही अपनी महफ़िल से निकाला था,
आज हुए से दीवाने ढूँढते हैं ।

मुसाफ़िर बे-ख़बर हैं तेरी आँखों से,
तेरे शहर में मैख़ाने ढूँढते हैं ।

तुझे क्या पता ऐ सितम ढाने वाले,
हम तो रोने के बहाने ढूँढते हैं ।

उनकी आँखों को यूँ ना देखो ’फ़राज़’,
नए तीर हैं, निशाने ढूँढते हैं ।