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"महफिल में बहुत लोग थे मै तन्हा गया था / शहरयार" के अवतरणों में अंतर

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ये हादसा किस वक्त कहाँ कैसे हुआ था
हाँ तुझ को वहाँ देख कर कुछ डर सा लगा था<br><br>
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आँखे हैं कि बस रौजने दीवार* हुई हैं
प्यासों के तअक्कुब* सुना दरिया गया था<br><br>
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इस तरह तुझे पहले कभी देखा गया था<br><br>
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कल धूप तहफ्फुज* के लिए साया गया था
  
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वो कौन सी साअत थी पता हो तो बताओ
कल धूप तहफ्फुज* के लिए साया गया था<br><br>
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ये वक्त शबो-रोज* में जब बाँटा गया था
 
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* रात-दिन
 
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20:55, 26 सितम्बर 2010 का अवतरण

महफिल में बहुत लोग थे मै तन्हा गया था
हाँ तुझ को वहाँ देख कर कुछ डर सा लगा था

ये हादसा किस वक्त कहाँ कैसे हुआ था
प्यासों के तअक्कुब* सुना दरिया गया था

आँखे हैं कि बस रौजने दीवार* हुई हैं
इस तरह तुझे पहले कभी देखा गया था

ऐ खल्के-खुदा तुझ को यकीं आए-न-आए
कल धूप तहफ्फुज* के लिए साया गया था

वो कौन सी साअत थी पता हो तो बताओ
ये वक्त शबो-रोज* में जब बाँटा गया था

  • पीछा करना

  • झरोखा

  • संरक्षण

  • रात-दिन