भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"फुटकर शेर / इंशा अल्लाह खां" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKMeaning}} <ref></ref>)
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 +
{{KKGlobal}}
 +
{{KKRachna
 +
|रचनाकार=इंशा अल्लाह खां
 +
}}
 +
{{KKCatGhazal}}
 +
<poem>
 +
'''1.'''
 +
सज गर्म, जबीं गर्म, निगह गर्म, अदा गर्म ।
 +
वोह सरसे है ता नाख़ुने पा, नामे ख़ुदा गर्म ।।
 +
'''2.'''
 +
परतओसे चाँदनी के है सहने बाग ठंडा ।
 +
फूलों की सेज पर आ, करदे चिराग़ ठंडा ।।
 +
'''3.'''
 +
लेके मैं ओढ़ूँ, बिछाऊँ, लपेटूँ क्या करूँ ?
 +
रूखी, फीकी, सूखी, साखी महरबानी आपकी ।।
 +
'''4.'''
 +
ख़याल कीजिए क्या आज काम मैंने किया ।
 +
जब उनने दी मुझे गाली, सलाम मैंने किया ।।
 +
'''5.'''
 +
कोई दुनिया से क्या भला माँगे ।
 +
वह तो बेचारी आप न्ण्गी है ।।
 +
'''6.'''
 +
गर यार मय पिलाए तो फिर क्यों न पीजिए ।
 +
ज़ाहिद नहीं, मैं शेख नहीं, कुछ वली नहीं ।।
 +
'''7.'''
 +
अजीब लुत्फ़ कुछ आपस की छेड़ छाड़ में है ।
 +
कहाँ मिलाप में वह बात जो बिगाड़ में है ।।
 +
'''8.'''
 +
झिड़की सही, अदा सही, चीनेजबीं<ref>माथे की त्यौरी</ref> सही ।
 +
यह सब सही, पर एक 'नहीं' की नहीं नहीं ।।
 +
'''9.'''
 +
गर 'नाज़नीं' कहने से बुरा मानते हो आप ।
 +
मेरी तरफ़ तो देखिए, मैं नाज़नीं सही ।।
 +
'''10.'''
 +
जिगर की आग बुझे जिससे जल्द वो शय<ref>चीज़</ref> ला ।
 +
लगा के बर्फ़ में साक़ी ! सुराहिए मय ला ।।
 +
'''11.'''
 +
नज़ाकत उस गुलेराना की देखिए 'इंशा' !
 +
नसीमे सुबह जो छू जाए रंग हो जाए मैला ।।
 +
'''12.'''
 +
है ज़ोरे हुस्न से वोह निहायत घमंड पर ।
 +
नामे ख़ुदा निगाह पड़े क्यों न डंड पर ।।
 +
'''13.'''
 +
यह जो महन्त बैठे हैं राधा के कुंड पर ।
 +
औतार बन के गिरते हैं परियों के झुंड पर ।।
 +
'''14.'''
 +
ग़ुस्से में हमने तेरा बड़ा लुत्फ़ उठाया ।
 +
अब तो अमूमन<ref>प्रायः</ref> और भी तक़सीर<ref>बेअदबी, अपराध</ref> करेंगे ।।
 +
</poem>
 
{{KKMeaning}}
 
{{KKMeaning}}
 
<ref></ref>
 
<ref></ref>

01:32, 27 सितम्बर 2010 का अवतरण

1.
सज गर्म, जबीं गर्म, निगह गर्म, अदा गर्म ।
वोह सरसे है ता नाख़ुने पा, नामे ख़ुदा गर्म ।।
2.
परतओसे चाँदनी के है सहने बाग ठंडा ।
फूलों की सेज पर आ, करदे चिराग़ ठंडा ।।
3.
लेके मैं ओढ़ूँ, बिछाऊँ, लपेटूँ क्या करूँ ?
रूखी, फीकी, सूखी, साखी महरबानी आपकी ।।
4.
ख़याल कीजिए क्या आज काम मैंने किया ।
जब उनने दी मुझे गाली, सलाम मैंने किया ।।
5.
कोई दुनिया से क्या भला माँगे ।
वह तो बेचारी आप न्ण्गी है ।।
6.
गर यार मय पिलाए तो फिर क्यों न पीजिए ।
ज़ाहिद नहीं, मैं शेख नहीं, कुछ वली नहीं ।।
7.
अजीब लुत्फ़ कुछ आपस की छेड़ छाड़ में है ।
कहाँ मिलाप में वह बात जो बिगाड़ में है ।।
8.
झिड़की सही, अदा सही, चीनेजबीं<ref>माथे की त्यौरी</ref> सही ।
यह सब सही, पर एक 'नहीं' की नहीं नहीं ।।
9.
गर 'नाज़नीं' कहने से बुरा मानते हो आप ।
मेरी तरफ़ तो देखिए, मैं नाज़नीं सही ।।
10.
जिगर की आग बुझे जिससे जल्द वो शय<ref>चीज़</ref> ला ।
लगा के बर्फ़ में साक़ी ! सुराहिए मय ला ।।
11.
नज़ाकत उस गुलेराना की देखिए 'इंशा' !
नसीमे सुबह जो छू जाए रंग हो जाए मैला ।।
12.
है ज़ोरे हुस्न से वोह निहायत घमंड पर ।
नामे ख़ुदा निगाह पड़े क्यों न डंड पर ।।
13.
यह जो महन्त बैठे हैं राधा के कुंड पर ।
औतार बन के गिरते हैं परियों के झुंड पर ।।
14.
ग़ुस्से में हमने तेरा बड़ा लुत्फ़ उठाया ।
अब तो अमूमन<ref>प्रायः</ref> और भी तक़सीर<ref>बेअदबी, अपराध</ref> करेंगे ।।

शब्दार्थ
<references/>

<ref></ref>