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"जो चोट दे गए उसे गहरा तो मत करो / अहमद कमाल 'परवाज़ी'" के अवतरणों में अंतर
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18:45, 27 सितम्बर 2010 का अवतरण
जो चोट दे गए उसे गहरा तो मत करो हम बेवक़ूफ़ हैं, कही चर्चा तो मत करो
माना के तुमने शहर को सर कर लिया मगर दिल जा नमाज़ है से रास्ता तो मत करो
बा-इख्तियार-ए- शहर-ए-सितम हो ये शक नहीं लेकिन खुदा नहीं है ये दावा तो मत करो
बर्दाश्त कर लिया चलो बारीक पैराहन पर इसको जान करके भिगोया तो मत करो
तामीर का जूनून मुबारक तुम्हे मगर , कारीगरों के हाथ तराशा तो मत करो ...