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"वो अब तिजारती पहलू निकाल लेता है / अहमद कमाल 'परवाज़ी'" के अवतरणों में अंतर

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18:48, 27 सितम्बर 2010 का अवतरण

वो अब तिजारती पहलू निकाल लेता है मैं कुछ कहूं तो तराजू निकाल लेता है

वो फूल तोड़े हमें कोई ऐतराज़ नहीं मगर वो तोड़ के खुशबू निकाल लेता है,

अँधेरे चीर के जुगनू निकालने का हुनर बहुत कठिन है मगर तू निकाल लेता है,

मैं इसलिए भी तेरे फेन की कद्र करता हूँ, तू झूठ बोल के आंसू निकाल लेता है,

वो बेवफाई का इज़हार यूं भी करता है, परिंदे मार के बाजू निकाल लेता है ....