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"जयकृष्ण राय तुषार" के अवतरणों में अंतर

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(हम तो मिट्‌टी के खिलौने थे गरीबों में रहे)
 
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कोई पूजा में रहे कोई अजानों में रहे
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* [[हम तो मिट्‌टी के खिलौने थे गरीबों में रहे / जयकृष्ण राय तुषारजयकृष्ण राय तुषार ]]
हर कोई अपने इबादत के ठिकानों में रहे।
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अब फिजाओं में न दहशत हो, न चीखें, न लहू
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अम्न का जलता दिया सबके मकानों में रहे।
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ऐ मेरे मुल्क मेरा ईमां बचाये रखना
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कोई अफवाह की आवाज न कानों में रहे।
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मेरे अशआर मेरे मुल्क की पहचान बनें
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कोई रहमान मेरे कौमी तरानें में रहे।
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बाज के पंजों न ही जाल, बहेलियों से डरे
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ये परिन्दे तो हमेशा ही उड़ानों में रहे।
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हम तो मिट्‌टी के खिलौने थे गरीबों में रहे
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चाभियों वाले बहुत ऊंचे घरानों में रहे।
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वो तो इक शेर था जंगल से खुले में आया
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ये शिकारी तो हमेशा ही मचानों में रहे।
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19:25, 29 सितम्बर 2010 का अवतरण