भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"हम तो मिट्‌टी के खिलौने थे गरीबों में रहे / जयकृष्ण राय तुषार" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: कोई पूजा में रहे कोई अजानों में रहे हर कोई अपने इबादत के ठिकानों म…)
(कोई अंतर नहीं)

19:26, 29 सितम्बर 2010 का अवतरण

कोई पूजा में रहे कोई अजानों में रहे हर कोई अपने इबादत के ठिकानों में रहे

अब फिजाओं में न दहशत हो, न चीखें, न लहू अम्न का जलता दिया सबके मकानों में रहे

ऐ मेरे मुल्क मेरा ईमां बचाये रखना कोई अफवाह की आवाज न कानों में रहे

मेरे अशआर मेरे मुल्क की पहचान बनें कोई रहमान मेरे कौमी तरानें में रहे

बाज के पंजों न ही जाल, बहेलियों से डरे ये परिन्दे तो हमेशा ही उड़ानों में रहे

हम तो मिट्‌टी के खिलौने थे गरीबों में रहे चाभियों वाले बहुत ऊंचे घरानों में रहे

वो तो इक शेर था जंगल से खुले में आया ये शिकारी तो हमेशा ही मचानों में रहे।