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"हाथ आकर लगा गया कोई / कैफ़ी आज़मी" के अवतरणों में अंतर
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+ | बेच के अपना खा गया कोई । | ||
+ | अब कुछ अरमाँ हैं न कुछ सपने | ||
+ | सब कबूतर उड़ा गया कोई । | ||
यह सदी धूप को तरसती है | यह सदी धूप को तरसती है | ||
+ | जैसे सूरज को खा गया कोई । | ||
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मेरा बचपन भी साथ ले आया | मेरा बचपन भी साथ ले आया | ||
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20:09, 30 सितम्बर 2010 का अवतरण
हाथ आ कर गया, गया कोई । मेरा छप्पर उठा गया कोई ।
लग गया इक मशीन में मैं भी शहर में ले के आ गया कोई ।
मैं खड़ा था कि पीठ पर मेरी इश्तिहार इक लगा गया कोई ।
ऐसी मंहगाई है कि चेहरा भी बेच के अपना खा गया कोई ।
अब कुछ अरमाँ हैं न कुछ सपने सब कबूतर उड़ा गया कोई ।
यह सदी धूप को तरसती है जैसे सूरज को खा गया कोई ।
वो गए जब से ऐसा लगता है छोटा-मोटा ख़ुदा गया कोई ।
मेरा बचपन भी साथ ले आया गाँव से जब भी आ गया कोई ।