"आँगन से होकर आया है / कृष्ण मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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सारा वातावरण तुम्हारी साँसों की खुशबू से पूरित, | सारा वातावरण तुम्हारी साँसों की खुशबू से पूरित, | ||
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शायद यह मधुमास तुम्हारे आँगन से होकर आया है. | शायद यह मधुमास तुम्हारे आँगन से होकर आया है. | ||
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इससे पहले यह मादकता, कभी न थी वातावरणों में, | इससे पहले यह मादकता, कभी न थी वातावरणों में, | ||
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महक न थी ऐसी फूलों में. बहक नहीं थी आचरणों में, | महक न थी ऐसी फूलों में. बहक नहीं थी आचरणों में, | ||
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मन में यह भटकाव, न मौसम में इतना आवारापन था, | मन में यह भटकाव, न मौसम में इतना आवारापन था, | ||
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मस्ती का माहौल नहीं था, जीवन में बस खारापन था, | मस्ती का माहौल नहीं था, जीवन में बस खारापन था, | ||
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लेकिन कल से अनायास ही मौसम में इतना परिवर्तन, | लेकिन कल से अनायास ही मौसम में इतना परिवर्तन, | ||
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शायद यह वातास तुम्हारे मधुबन से होकर आया है. | शायद यह वातास तुम्हारे मधुबन से होकर आया है. | ||
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आज न जाने अरुणोदय में, शबनम भी सुस्मित सुरभित है, | आज न जाने अरुणोदय में, शबनम भी सुस्मित सुरभित है, | ||
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किरणों में ताज़गी सुवासित कलियों का मस्तक गर्वित है, | किरणों में ताज़गी सुवासित कलियों का मस्तक गर्वित है, | ||
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आकाशी नीलिमा न जाने क्यों कर संयम तोड़ रही है, | आकाशी नीलिमा न जाने क्यों कर संयम तोड़ रही है, | ||
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ऊषा का अनुबंध अजाने पुलकित मन से जोड़ रही है, | ऊषा का अनुबंध अजाने पुलकित मन से जोड़ रही है, | ||
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ऐसा ख़ुशियों का मौसम है, बेहोशी के आलम वाला, | ऐसा ख़ुशियों का मौसम है, बेहोशी के आलम वाला, | ||
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शायद पुष्पित हास तुम्हारे गोपन से होकर आया है, | शायद पुष्पित हास तुम्हारे गोपन से होकर आया है, | ||
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मेरे चारों ओर तुम्हारी ख़ुशियों का उपवन महका है, | मेरे चारों ओर तुम्हारी ख़ुशियों का उपवन महका है, | ||
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शायद इसीलिए बिन मौसम मेरा मन पंछी चहका है, | शायद इसीलिए बिन मौसम मेरा मन पंछी चहका है, | ||
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मलयानिल चन्दन के बन से खुशबू ले अगवानी करता, | मलयानिल चन्दन के बन से खुशबू ले अगवानी करता, | ||
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उन्मादी मधु ऋतु का झोंका सबसे छेड़ाखानी करता, | उन्मादी मधु ऋतु का झोंका सबसे छेड़ाखानी करता, | ||
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सिंदूरी संध्या सतवंती साज सँवारे मुस्काती है, | सिंदूरी संध्या सतवंती साज सँवारे मुस्काती है, | ||
− | यह चंदनी सुवास तुम्हारे उपवन से हो कर आया है. | + | |
+ | यह चंदनी सुवास तुम्हारे उपवन से हो कर आया है. |
01:34, 2 अक्टूबर 2010 के समय का अवतरण
सारा वातावरण तुम्हारी साँसों की खुशबू से पूरित,
शायद यह मधुमास तुम्हारे आँगन से होकर आया है.
इससे पहले यह मादकता, कभी न थी वातावरणों में,
महक न थी ऐसी फूलों में. बहक नहीं थी आचरणों में,
मन में यह भटकाव, न मौसम में इतना आवारापन था,
मस्ती का माहौल नहीं था, जीवन में बस खारापन था,
लेकिन कल से अनायास ही मौसम में इतना परिवर्तन,
शायद यह वातास तुम्हारे मधुबन से होकर आया है.
आज न जाने अरुणोदय में, शबनम भी सुस्मित सुरभित है,
किरणों में ताज़गी सुवासित कलियों का मस्तक गर्वित है,
आकाशी नीलिमा न जाने क्यों कर संयम तोड़ रही है,
ऊषा का अनुबंध अजाने पुलकित मन से जोड़ रही है,
ऐसा ख़ुशियों का मौसम है, बेहोशी के आलम वाला,
शायद पुष्पित हास तुम्हारे गोपन से होकर आया है,
मेरे चारों ओर तुम्हारी ख़ुशियों का उपवन महका है,
शायद इसीलिए बिन मौसम मेरा मन पंछी चहका है,
मलयानिल चन्दन के बन से खुशबू ले अगवानी करता,
उन्मादी मधु ऋतु का झोंका सबसे छेड़ाखानी करता,
सिंदूरी संध्या सतवंती साज सँवारे मुस्काती है,
यह चंदनी सुवास तुम्हारे उपवन से हो कर आया है.