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"हरेक बागे अदब में बहार है हिन्दी / जयकृष्ण राय तुषार" के अवतरणों में अंतर
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15:49, 4 अक्टूबर 2010 का अवतरण
हरेक बागे अदब में बहार है हिन्दी
कहीं गुलाब कहीं हरसिंगार है हिन्दी
ये रहीम, दादू और रसखान की विरासत है
कबीर सूर और तुलसी का प्यार है हिन्दी
फिजी, गुयाना, मॉरीशस में इसकी खुश्बू है
हजारों मील समन्दर के पार है हिन्दी
महक खुलूस की आती है इसके नग्मों से
किसी हसीन की वीणा का तार है हिन्दी