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"लोग हुए बेताल से / जयकृष्ण राय तुषार" के अवतरणों में अंतर

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इस मौसम की
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बात न पूछो
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बात न पूछो<br />
लोग हुए बेताल से।
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भोर नहायी
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हवा लौटती
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पुरइन ओढ़े ताल से।
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चप्पा चप्पा
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सजा धजा है
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संवरा निखरा है
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जाफरान की<br />
 
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खुश्बू वाला<br />
 
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15:57, 4 अक्टूबर 2010 का अवतरण

इस मौसम की
बात न पूछो
लोग हुए बेताल से।
भोर नहायी
हवा लौटती
पुरइन ओढ़े ताल से।
चप्पा चप्पा
सजा धजा है
संवरा निखरा है
जाफरान की
खुश्बू वाला
जूड़ा बिखरा है
एक फूल
छू गया अचानक
आज गुलाबी गाल से ।
आंखें दौड
रही रेती में
पागल हिरनी सी,
मुस्कानों की
बात न पूछो
जादूगरनी सी,
मन का योगी
भटक गया है
फिर पूजा की थाल से
सबकी अपनी
अपनी जिद है
शर्तें हैं अपनी,
जितना पास
नदी के आये
प्यास बढ़ी उतनी,
एक एक मछली
टकराती जानें
कितने जाल से।