भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अजनबी मनुष्य / अमरजीत कौंके

1,566 bytes added, 08:00, 5 अक्टूबर 2010
{{KKCatKavita}}
<poem>
क्यों मेरे लिये
वे लोग ही अजनबी बन गए
मैं जिनकी साँसों में जीता था
जो मेरी
साँसों में बसते थे
यह हादसा कैसे हुआ
कि मैं उनसे आँखें चुराने लगा
मैं उनकी मुसीबतें भुलाने लगा
जिन्हें कितनी बार
मैंने उनके साथ
अपने जिस्म पर झेला
वह तल्ख़ दर्द
कितने हमारे आँसू साँझे
हमने एक दूसरे के पोरों से पोंछे
एक दूसरे की राहों के काँटे
कितनी बार हमने
अपनी पलकों से समेटे
 
पता नहीं
वक़्त अचानक
क्या हादसा कर गया
कि मेरे भीतर
जो इन सब का अपना था
वह कैसे अचानक
धीरे-धीरे मर गया
 
उसके स्थान पर
मेरे भीतर
यह अजनबी-सा मनुष्य
कौन
प्रवेश कर गया
 
कि मेरे लिए
वे लोग ही अजनबी बन गए
मैं जिनकी साँसों में बसता था
जो मेरी साँसों में जीते थे ।
'''मूल पंजाबी से हिंदी में रूपांतर : स्वयं कवि द्वारा
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,235
edits