भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"गुज़रे हुए तवील ज़माने के बाद भी / फ़राज़" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Bohra.sankalp (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अहमद फ़राज़ |संग्रह=खानाबदोश / फ़राज़ }} [[Category:ग़ज़…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
15:44, 6 अक्टूबर 2010 का अवतरण
गुज़रे हुए तवील ज़माने के बाद भी,
दिल में रहा वो छोड़ के जाने के बाद भी,
पहलू में रह के दिल नहीं दिया है बहुत फ़रेब,
रखा है उसको याद भुलाने के बाद भी,
गो तू यहाँ नहीं है मगर तू यहीं पे है,
तेरा ही ज़िक्र है मेरे जाने के बाद भी,
लगता है कुछ कहा ही नहीं है उसे ‘फ़राज़’,
दिल का तमाम हाल सुनाने के बाद भी,