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15:47, 6 अक्टूबर 2010 के समय का अवतरण
गुज़रे हुए तवील ज़माने के बाद भी,
दिल में रहा वो छोड़ के जाने के बाद भी,
पहलू में रह के दिल नहीं दिया है बहुत फ़रेब,
रखा है उसको याद भुलाने के बाद भी,
गो तू यहाँ नहीं है मगर तू यहीं पे है,
तेरा ही ज़िक्र है मेरे जाने के बाद भी,
लगता है कुछ कहा ही नहीं है उसे ‘फ़राज़’,
दिल का तमाम हाल सुनाने के बाद भी,