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15:47, 6 अक्टूबर 2010 के समय का अवतरण
थक गया है मुसलसल सफ़र उदासी का,
और अब भी है मेरे शाने पे सर उदासी का,
वो कौन कीमिया-गर था के जो बिखेर गया,
तेरे गुलाब से चेहरे पे ज़र उदासी का,
मेरे वजूद के खि़ल्वते-क़दे में कोई तो था,
जो रख गया है दिया ताक़ पर उदासी का,
मैं तुझसे कैसे कहूँ यार-ए-मेहरबां मेरे,
के तू ही इलाज़ है मेरी हर उदासी का,
ये अब जो आग का दरिया मेरे वजूद में है,
यही तो पहले-पहल था शरार उदासी का,
ना जाने आज कहाँ खो गया सितार-ए-शाम,
वो मेरा दोस्त, मेरा हमसफ़र उदासी का,
‘फ़राज़’ दीदा-ए-पुराब में ना ढूंढ उसे,
के दिल की तह में कहीं है गोहर उदासी का,