"बिके प्यादों से हम सरकार का बहुमत जुटाते हैं / जयकृष्ण राय तुषार" के अवतरणों में अंतर
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17:17, 6 अक्टूबर 2010 का अवतरण
सभी सरसब्ज मौसम के नये सपने दिखाते हैं
हमें मालूम है वो किस तरह वादे निभाते हैं।
इलेक्शन में हुनर, जादूगरी सब देखिए इनकी
ये हर भाषण में सड़कें और टूटे पुल बनाते हैं।
चलो मिल जाएगी उस वक्त पे दो वक्त की रोटी
हम इस मकसद से जिन्दाबाद के नारे लगाते हैं।
हमारा सच कभी देखा नहीं है इनकी आंखों ने
हमारे रहनुमा किस रंग का चश्मा लगते हैं।
अभी हर शखस के घर का पता मालूम हैं इनको
सदन में जाके ये पूरा इलाका भूल जाते हैं।
पुरानी साइकिल, हाथी, कमल, पंजा नया क्या है
हमें हर बार ये देखा हुआ सर्कस दिखाते हैं।
हमारे वोट से संसद में नाकाबिल पहुंचते हैं
जो काबिल हैं गुनाहों से हमारे हार जाते हैं।
वो साहब हैं उन्हें हर काम के खातिर हैं चपरासी
हम अपना बोझ अपने हाथ से सिर पर उठाते हैं।
तबाही देखते हैं वो हमारी वायुयानों से
हम दरिया में बिना कश्ती के ही गोता लगाते हैं।
जो सत्ता में है वो सूरज उगा लेते हैं रातों को
हमारे घर दीये बस सांझ को ही टिमटिमाते हैं।
भंवर में घूमती कश्ती के हम ऐसे मुसाफिर हैं
न हम इस पार आते हैं न हम उस पार जाते हैं।
ये संसद हो गयी बाजार इसके मायने क्या हैं
बिके प्यादों से हम सरकार का बहुमत जुटाते हैं।