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"हो गया मुश्किल शहर में डाकिया दिखना / जयकृष्ण राय तुषार" के अवतरणों में अंतर

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10:06, 10 अक्टूबर 2010 का अवतरण

फोन पर
बातें न करना
चिट्ठियाँ लिखना।
हो गया
मुश्किल शहर में
डाकिया दिखना।

चिट्ठियों में
लिखे अक्षर
मुश्किलों में काम आते हैं,
हम कभी रखते
किताबों में इन्हें
कभी सीने से लगाते हैं,
चिट्ठियाँ होतीं
सुनहरे
वक्त का सपना।

इन चिट्ठियों
से भी महकते
फूल झरते हैं,
शब्द
होठों की तरह ही
बात करते हैं
ये हाल सबका
पूछतीं
हो गैर या अपना।

चिट्ठियाँ जब
फेंकता है डाकिया
चूड़ियों सी खनखनाती हैं,
तोड़ती हैं
कठिन सूनापन
स्वप्न आँखों में सजाती हैं,
याद करके
इन्हें रोना या
कभी हँसना।

वक्त पर
ये चिट्ठियाँ
हर रंग के चश्में लगाती हैं,

दिल मिले
तो ये समन्दर
सरहदों के पार जाती हैं,

चिट्ठियाँ हों
इन्द्रधनुषी
रंग भर इतना।