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"एक और रात / लोग ही चुनेंगे रंग" के अवतरणों में अंतर
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14:44, 10 अक्टूबर 2010 के समय का अवतरण
दर्द जो जिस्म की तहों में बिखरा है
उसे रातें गुज़ारने की आदत हो गई है
रात की मक्खियाँ रात की धूल
नाक कान में से घुस जिस्म की सैर करती हैं
पास से गुजरते अनजान पथिक
सदियों से उनके पैरों की आवाज़ गूँजती है
मस्तिष्क की शिराओं में.
उससे भी पहले जब रातें बनीं थीं
गूँजती होंगीं ये आवाज़ें.
उससे भी पहले से आदत पड़ी होगी
भूखी रातों की