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14:45, 10 अक्टूबर 2010 के समय का अवतरण
कोई बाहर से आता है
कोई अन्दर है.
कोई भाषा ले आता है
कोई गूँगा है
कोई गीत गाता है
कोई बहरा है.
किसी के अन्दर क्या बुझा है
कोई सोचता है ढूँढा जाए
कोई बुझी आँखों से
किसी को दिखलाता है
ज़मीन आसमान के रंग.
कोई थका लौटता
कोई सोच बुनता.
किस ने किस को कितना समझा
किसी के जाते ही किसी की दुनिया से
गायब हो जाता किस और किस का निजी इतिहास
बन्द होते ही खिड़की
बन्द हो जाते
पेड़ आसमाँ फूलों के बाग़ .
किसी की ज़िन्दगी बहुत करीब होती है
कोई ज़िन्दगी से बहुत दूर होता है