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"जिनको बुरा लगा उनसे कुट्टी / लोग ही चुनेंगे रंग" के अवतरणों में अंतर
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14:52, 10 अक्टूबर 2010 के समय का अवतरण
आज फिर चाहता रहा कि तुम होती यहाँ
चाहना तुम्हें दारू की वजह थी
दिमाग में वह औरत भी थी
जिसे देख कर हम दोनों ने भौंहें सिकोड़ी थी
मैंने तुमसे छिपाकर सोचा उसका बदन
उसके होंठों के पास जाकर
लौट आया मेरा सपना
आज़ादी की उसकी सभी घोषणाएँ
मेरी गुलामी चाहती थीं और
मुझे बचाने आसमान से कृष्ण रथ चलाते आ गए
पिछली रात ही तुमने मुझे
पुकारा था अर्जुन कहकर
अब तुम कह रही देखो अर्जुन का रथ
सोचा नशे में बतलाऊँ
गुलाम लोगों के इस देश में हताश
हवा में उड़ते बादलों पर हम कैसे सवार
मैंने यह सब सोचा
हो सकता है कोई ऐसा ही सोचकर
दो क्षण हँसे या अपने दोस्त को चूमे
बहरहाल जिनको बुरा लगा उनसे कुट्टी.