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15:07, 10 अक्टूबर 2010 के समय का अवतरण


खिलने को जन्मा
दिन
मुर्झाता मैंने देखा
उसे देखा
दिन
खिलने को जन्मा

दिन जन्मा
एक बार फिर मैं जन्मा
उसे देखा
देखा चराचर
खिल रहे
अपने-अपने दुखों में बराबर
दिन खिलता
रोता मैंने देखा
दिन
खिलने को जन्मा.