भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सफर हमसफर / लोग ही चुनेंगे रंग" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लाल्टू |संग्रह=लोग ही चुनेंगे रंग / लाल्टू }} <poem> ऐ…)
 
(कोई अंतर नहीं)

15:09, 10 अक्टूबर 2010 के समय का अवतरण


ऐसा ही होगा यह सफ़र
कभी साथ होंगे
कभी नहीं भी
रास्ते में पत्थर होंगे
पत्थरों पर सिर टिकाकर सोएँगे

होंगे नुकीले ही पत्थर ज़्यादा
पत्थरों पर ठोकर खा रोएँगे.

जो सहज है
वही यात्रा होगी जटिल कभी
जैसे स्पर्श होगा अकिंचन
बातें होंगी अनर्गल
उन सब बातों पर
जिन पर बातें होनी न थीं.

बातों के सिवा पास कुछ है भी नहीं
यह भी सच कि
दुनिया बातों से नहीं चलती
अमीर नहीं होते कला, साहित्य के गुणी.

फिर भी सफ़र में
गलती से आ ही जाता है वह पड़ाव
जब सोचते हैं
कि अब साथ ही चलेंगे
जब डर होता है
कि कभी बातें याद आएँगीं
और बातें करने वाले न होंगे

डर होता है
कभी सब जान कर भी
आँखें घूमेंगीं
ढूँढेंगीं हमसफ़र.