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15:22, 10 अक्टूबर 2010 के समय का अवतरण
दिन दहाड़े जिसकी हत्या हुई
जिसने हत्या की.
जिसका नाम इतिहास की पुस्तक में है
जिसका हटाया गया
जिसने बन्दूक के सामने सीना ताना
जिसने बन्दूक तानी.
कोई भी हो सकता है
माँ का बेटा, धरती का दावेदार
उगते या अस्त होते सूरज को देखकर
पुलकित होता, रोमांच भरे सपनों में
एक अमूर्त्त विचार के साथ प्रेमालाप करता.
एक क्षण होता है ऐसा
जब उन्माद शिथिल पड़ता है
प्रेम तब प्रेम बन उगता है
देशभक्त का सीना तड़पता है
जीभ पर होता है आम इमली जैसी
स्मृतियों का स्वाद
नभ थल एकाकार उस शून्य में
जीता है वह प्राणी देशभक्त.
वही जिसने ह्त्या की होती है
जिसकी हत्या हुई होती है.