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"सात कविताएं-1 / लोग ही चुनेंगे रंग" के अवतरणों में अंतर
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15:24, 10 अक्टूबर 2010 के समय का अवतरण
वह जो बार बार पास आता है
क्या उसे पता है वह क्या चाहता है
वह जाता है
लौटकर नाराज़गी के मुहावरों
के किले गढ़
भेजता है शब्दों की पतंगें
मैं जो समझता हूँ मैं क्या चाहता हूँ
क्या सचमुच मुझे पता है मैं क्या चाहता हूँ
जैसे चाँद पर मुझे कविता लिखनी है
वैसे ही लिखनी है उस पर भी
मज़दूरों के साथ बिताई एक शाम की
चाँदनी में लौटते हुए
एक चाँद उसके लिए देखता हूँ
चाँदनी हम दोनों को छूती
पार करती असंख्य वन-पर्वत
बीहड़ों से बीहड़ इन्सानी दरारों
को पार करती चाँदनी
उस पर कविता लिखते हुए
लिखता हूँ ताण्डव गीत
तोड़ दो, तोड़ दो, सभी सीमाओं को तोड़ दो.