भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"सात कविताएँ-4 / लाल्टू" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लाल्टू |संग्रह=लोग ही चुनेंगे रंग / लाल्टू }} <poem> म…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
11:18, 11 अक्टूबर 2010 का अवतरण
मेरे लिए भी कोई सोचता है
अँधेरे में तारों की रोशनी में उसे देखता हूँ
दूर खिड़की पर उदास खड़ी है. दबी हुई मुस्कान
जो दिन भर उसे दिगन्त तक फैलाए हुए थी
इस वक्त बहुत दब गई है.
अनगिनत सीमाओं पार खिड़की पर वह उदास है.
उसके खयालों में मेरी कविताएँ हैं. सीमाएँ पार
करते हुए गोलीबारी में कविताएँ हैं लहूलुहान.
वह मेरी हर कविता की शुरुआत.
वह काश्मीर के बच्चों की उदासी.
वह मेरा बसन्त, मेरा नवगीत, वह मुर्झाई सी.