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"सात कविताएँ-4 / लाल्टू" के अवतरणों में अंतर

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11:18, 11 अक्टूबर 2010 का अवतरण


मेरे लिए भी कोई सोचता है
अँधेरे में तारों की रोशनी में उसे देखता हूँ
दूर खिड़की पर उदास खड़ी है. दबी हुई मुस्कान
जो दिन भर उसे दिगन्त तक फैलाए हुए थी
इस वक्त बहुत दब गई है.

अनगिनत सीमाओं पार खिड़की पर वह उदास है.
उसके खयालों में मेरी कविताएँ हैं. सीमाएँ पार
करते हुए गोलीबारी में कविताएँ हैं लहूलुहान.

वह मेरी हर कविता की शुरुआत.
वह काश्मीर के बच्चों की उदासी.
वह मेरा बसन्त, मेरा नवगीत, वह मुर्झाई सी.