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"सात कविताएँ-5 / लाल्टू" के अवतरणों में अंतर

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11:18, 11 अक्टूबर 2010 का अवतरण


वह जो मेरा है
मेरे पास होकर भी मुझ से बहुत दूर है.
पास आने के मेरे उसके खयाल
आश्चर्य का छायाचित्र बन दीवार पर टँगे हैं,
द्विआयामी अस्तित्व में हम अवाक देखते हैं
हमारे बीच की ऊँची दीवार.

ईश्वर अल्लाह तेरो नाम
अनजान लकीर के इस पार उस पार
उँगलियाँ छूती हैं
स्पर्श पौधा बन पुकारता है
स्पर्श ही अल्लाह, स्पर्श ही ईश्वर.