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11:30, 11 अक्टूबर 2010 के समय का अवतरण
हर रोज बतियाती सलोनी सखी
हर रोज समझाती दीवानी सखी
गीतों में मनके पिरोती सखी
सपनों में पलकें भिगोती सखी
नाचती है गाती हठलाती सखी
सुबह सुबह आग में जल जाती सखी
पानी की आग है
या तेल की है आग
झुलसी है चमड़ी
या फन्दा या झाग
देखती हूँ आइने में खड़ी है सखी
सखी बन जाऊँ तो पूरी है सखी
न बतियाना समझाना, न मनके पिरोना
न गाना, इठलाना, न पलकें भिगोना
सखी मेरी सखी हाड़ माँस मूर्त्त
निगल गई दुनिया
निष्ठुर और धूर्त्त.