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"सात कविताएँ-4 / लाल्टू" के अवतरणों में अंतर
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मेरे लिए भी कोई सोचता है | मेरे लिए भी कोई सोचता है | ||
अँधेरे में तारों की रोशनी में उसे देखता हूँ | अँधेरे में तारों की रोशनी में उसे देखता हूँ | ||
दूर खिड़की पर उदास खड़ी है. दबी हुई मुस्कान | दूर खिड़की पर उदास खड़ी है. दबी हुई मुस्कान | ||
जो दिन भर उसे दिगन्त तक फैलाए हुए थी | जो दिन भर उसे दिगन्त तक फैलाए हुए थी | ||
− | इस | + | इस वक़्त बहुत दब गई है । |
− | अनगिनत सीमाओं पार खिड़की पर वह उदास है | + | अनगिनत सीमाओं पार खिड़की पर वह उदास है । |
− | उसके | + | उसके ख़यालों में मेरी कविताएँ हैं । सीमाएँ पार |
− | करते हुए गोलीबारी में कविताएँ हैं लहूलुहान | + | करते हुए गोलीबारी में कविताएँ हैं लहूलुहान । |
− | वह मेरी हर कविता की शुरुआत | + | वह मेरी हर कविता की शुरुआत । |
− | वह काश्मीर के बच्चों की उदासी | + | वह काश्मीर के बच्चों की उदासी । |
− | वह मेरा बसन्त, मेरा नवगीत, वह मुर्झाई सी | + | वह मेरा बसन्त, मेरा नवगीत, वह मुर्झाई-सी । |
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11:58, 11 अक्टूबर 2010 के समय का अवतरण
मेरे लिए भी कोई सोचता है
अँधेरे में तारों की रोशनी में उसे देखता हूँ
दूर खिड़की पर उदास खड़ी है. दबी हुई मुस्कान
जो दिन भर उसे दिगन्त तक फैलाए हुए थी
इस वक़्त बहुत दब गई है ।
अनगिनत सीमाओं पार खिड़की पर वह उदास है ।
उसके ख़यालों में मेरी कविताएँ हैं । सीमाएँ पार
करते हुए गोलीबारी में कविताएँ हैं लहूलुहान ।
वह मेरी हर कविता की शुरुआत ।
वह काश्मीर के बच्चों की उदासी ।
वह मेरा बसन्त, मेरा नवगीत, वह मुर्झाई-सी ।