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"सात कविताएँ-5 / लाल्टू" के अवतरणों में अंतर
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आश्चर्य का छायाचित्र बन दीवार पर टँगे हैं, | आश्चर्य का छायाचित्र बन दीवार पर टँगे हैं, | ||
द्विआयामी अस्तित्व में हम अवाक देखते हैं | द्विआयामी अस्तित्व में हम अवाक देखते हैं | ||
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ईश्वर अल्लाह तेरो नाम | ईश्वर अल्लाह तेरो नाम | ||
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उँगलियाँ छूती हैं | उँगलियाँ छूती हैं | ||
स्पर्श पौधा बन पुकारता है | स्पर्श पौधा बन पुकारता है | ||
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12:00, 11 अक्टूबर 2010 के समय का अवतरण
वह जो मेरा है
मेरे पास होकर भी मुझ से बहुत दूर है ।
पास आने के मेरे उसके ख़याल
आश्चर्य का छायाचित्र बन दीवार पर टँगे हैं,
द्विआयामी अस्तित्व में हम अवाक देखते हैं
हमारे बीच की ऊँची दीवार ।
ईश्वर अल्लाह तेरो नाम
अनजान लकीर के इस पार उस पार
उँगलियाँ छूती हैं
स्पर्श पौधा बन पुकारता है
स्पर्श ही अल्लाह, स्पर्श ही ईश्वर ।