"कारवां / आलोक धन्वा" के अवतरणों में अंतर
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12:52, 11 अक्टूबर 2010 के समय का अवतरण
समुद्र और शहर
एक दूसरे की याद से भरे हुए हैं
बंदरगाह हैं इनके रास्ते
और मज़दूर हैं इनके कारवाँ
शाम के समय गहरे पानी में
जब जहाज़ी लंगर डालते हैं
शहर अपनी बत्तियाँ जलाता है
दरवाज़ों में खड़ी स्त्रियाँ दिखाई देती हैं
क्या है उनके मन में
कैसी ज़मीन
बालू के ऊपर भी पानी
और बालू के नीचे भी पानी
समुद्र में काम करने वाले लोग
जब शहर में आते हैं
रात शुरू होती है
छुट्टी का सप्ताह है यह
एक सप्ताह की रात शुरू होती है
सात दिनों तक रात ही रात होगी
दुख होंगे लेकिन रेस्तराँ खुले रहेंगे
आधी रात के बाद भी सिनेमा दिखाया जायेगा
गाना जत्थों में गाया जायेगा
स्त्रितयों के साथ-साथ मर्द गायेंगे
इनमें बच्चे भी शामिल होंगे
और पालतू जानवर भी
जहाज़ के लंगर पानी में सोते रहेंगे
फिर अगले सप्ताह समुद्र ही समुद्र होगा
लेकिन इस सप्ताह शहर ही शहर।
(1997)