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"आस्माँ जैसी हवाएँ / आलोक धन्वा" के अवतरणों में अंतर
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तुम्हारे किनारे शरद के हैं | तुम्हारे किनारे शरद के हैं |
12:53, 11 अक्टूबर 2010 का अवतरण
समुद्र
तुम्हारे किनारे शरद के हैं
और तुम स्वयं समुद्र सूर्य और नमक के हो
तुम्हारी आवाज़ आंदोलन और गहराई की है
और हवाएँ
जो कई देशों को पार करती हुई
तुम्हारे भीतर पहुँचती हैं
आसमान जैसी
तुम्हें पार करने की इच्छा
अक्सर नहीं होती
भटक जाने का डर बना रहता है !
था