"हैराँ हूँ दिल को रोऊँ कि पीटूँ जिगर को मैं / ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर
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"ग़ालिब" ख़ुदा करे कि सवार-ए-समंद-ए-नाज़<ref>गर्व के घोड़े पर सवार</ref> | "ग़ालिब" ख़ुदा करे कि सवार-ए-समंद-ए-नाज़<ref>गर्व के घोड़े पर सवार</ref> | ||
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18:19, 13 अक्टूबर 2010 के समय का अवतरण
हैरां हूँ, दिल को रोऊँ कि पीटूँ जिगर को मैं
मक़दूर<ref>सामर्थ्य</ref> हूँ तो साथ रखूँ नौहागर<ref>मौत पर रोने वाला</ref> को मैं
छोड़ा न रश्क<ref>ईर्ष्या</ref> ने कि तेरे घर का नाम लूँ
हर इक से पूछता हूँ कि जाऊँ किधर को मैं
जाना पड़ा रक़ीब के दर पर हज़ार बार
ऐ काश, जानता न तेरी रहगुज़र को मैं
है क्या जो कस के बाँधिये मेरी बला डरे
क्या जानता नहीं हूँ तुम्हारी कमर को मैं
लो, वो भी कहते हैं कि ये बेनंग-ओ-नाम है
ये जानता अगर तो लुटाता न घर को मैं
चलता हूँ थोड़ी दूर हर-इक तेज़-रौ के साथ
पहचानता नहीं हूँ अभी राहबर<ref>पथ-प्रदर्शक</ref> को मैं
ख़्वाहिश को अहमक़ों ने परस्तिश<ref>पूजा</ref> दिया क़रार
क्या पूजता हूँ उस बुत-ए-बेदादगर<ref>निष्ठुर प्रिय</ref> को मैं
फिर बेख़ुदी में भूल गया, राह-ए-कू-ए-यार
जाता वगर्ना एक दिन अपनी ख़बर को मैं
अपने पे कर रहा हूँ क़यास<ref>अनुमान लगाना</ref> अहल-ए-दहर<ref>दुनिया वाले</ref> का
समझा हूँ दिल-पज़ीर<ref>दिल को लुभाने वाला</ref> मताअ़-ए-हुनर<ref>हुनर की दौलत</ref> को मैं
"ग़ालिब" ख़ुदा करे कि सवार-ए-समंद-ए-नाज़<ref>गर्व के घोड़े पर सवार</ref>
देखूँ अली बहादुर-ए-आली-गुहर<ref>अली बहादुर - एक पीर</ref> को मैं