भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अपनी बात / आलोक धन्वा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
					
										
					
					|  (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार = आलोक धन्वा }} {{KKCatKavita}} <poem>  कितने दिनों से रात आ रही ह…) | अनिल जनविजय  (चर्चा | योगदान)  | ||
| पंक्ति 5: | पंक्ति 5: | ||
| {{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
| <poem> | <poem> | ||
| − | |||
| कितने दिनों से रात आ रही है | कितने दिनों से रात आ रही है | ||
| जा रही है पृथ्वी पर | जा रही है पृथ्वी पर | ||
| पंक्ति 16: | पंक्ति 15: | ||
| (1996) | (1996) | ||
| + | </poem> | ||
20:33, 13 अक्टूबर 2010 के समय का अवतरण
कितने दिनों से रात आ रही है
जा रही है पृथ्वी पर
फिर भी इसे देखना 
इसमें होना एक अनोखा काम लगता है
मतलब कि मैं 
अपनी बात कर रहा हूँ।
(1996)
 
	
	

