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"खून में अपने ही नहलाया गया / सर्वत एम जमाल" के अवतरणों में अंतर
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22:39, 16 अक्टूबर 2010 के समय का अवतरण
रचनाकार=सर्वत एम जमाल संग्रह= }} साँचा:KKCatGazal
खून में अपने ही नहलाया गया
फिर मुझे सिक्कों में तुलवाया गया
जिस बगावत की खबर थी शहर को
इक तमाशा था यहाँ आया गया
लोग शर्मिन्दा थे जिस इतिहास पर
हर गली कूचे में दुहराया गया
जाने क्या साजिश रची मेमार ने
जंगलों को शहर बतलाया गया
आने वाली थी सवारी शाह की
खून से रस्तों को धुलवाया गया
चंद लोगों की खुशी के वास्ते
आदमी को भीड़ लिखवाया गया
तूं बहुत खुद्दार था सर्वत मगर
हाथ फैलाए हुए पाया गया