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"बैसाखी पर चलते लोग/ उदयप्रताप सिंह" के अवतरणों में अंतर
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इन ढालों के दुर्गम पथ पर देखे रोज़ फिसलते लोग । | इन ढालों के दुर्गम पथ पर देखे रोज़ फिसलते लोग । | ||
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फिर कैसे शिखरों पर पहुंचे बैसाखी पर चलते लोग ! | फिर कैसे शिखरों पर पहुंचे बैसाखी पर चलते लोग ! | ||
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प्यारी नदियों की आहों पर ह्रदय तुम्हारा पिघल गया | प्यारी नदियों की आहों पर ह्रदय तुम्हारा पिघल गया | ||
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सच कहता हूँ मित्र हिमालय, जग में नहीं पिघलते लोग । | सच कहता हूँ मित्र हिमालय, जग में नहीं पिघलते लोग । | ||
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आलीशान इबदातखाने लेकिन इनमें आए कौन | आलीशान इबदातखाने लेकिन इनमें आए कौन | ||
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दहशत के मौसम में अपने घर से नहीं निकलते लोग । | दहशत के मौसम में अपने घर से नहीं निकलते लोग । | ||
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हम क्या जानें धर्म की बातें जाकर उनसे पूछ न लो | हम क्या जानें धर्म की बातें जाकर उनसे पूछ न लो | ||
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हर मौसम में पोशाकों-सा जो ईमान बदलते लोग । | हर मौसम में पोशाकों-सा जो ईमान बदलते लोग । | ||
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हम हैं राही प्रेम-डगर के बाज़ न आए मर कर भी | हम हैं राही प्रेम-डगर के बाज़ न आए मर कर भी | ||
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दुनिया वाले कहते ठोकर खाकर यहाँ संभलते लोग । | दुनिया वाले कहते ठोकर खाकर यहाँ संभलते लोग । | ||
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औरों की पीड़ा से गौतम हरगिज़ बुद्ध नहीं होते | औरों की पीड़ा से गौतम हरगिज़ बुद्ध नहीं होते | ||
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यदि वैभव की चकाचौंध के मारे नहीं बदलते लोग । | यदि वैभव की चकाचौंध के मारे नहीं बदलते लोग । | ||
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कर्म बड़ा तो जाति बड़ी है मानो ‘उदय’ हमारी बात | कर्म बड़ा तो जाति बड़ी है मानो ‘उदय’ हमारी बात | ||
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वरना तुम जैसे सडकों पर मिलते बहुत टहलते लोग । | वरना तुम जैसे सडकों पर मिलते बहुत टहलते लोग । |
21:38, 17 अक्टूबर 2010 का अवतरण
इन ढालों के दुर्गम पथ पर देखे रोज़ फिसलते लोग ।
फिर कैसे शिखरों पर पहुंचे बैसाखी पर चलते लोग !
प्यारी नदियों की आहों पर ह्रदय तुम्हारा पिघल गया
सच कहता हूँ मित्र हिमालय, जग में नहीं पिघलते लोग ।
आलीशान इबदातखाने लेकिन इनमें आए कौन
दहशत के मौसम में अपने घर से नहीं निकलते लोग ।
हम क्या जानें धर्म की बातें जाकर उनसे पूछ न लो
हर मौसम में पोशाकों-सा जो ईमान बदलते लोग ।
हम हैं राही प्रेम-डगर के बाज़ न आए मर कर भी
दुनिया वाले कहते ठोकर खाकर यहाँ संभलते लोग ।
औरों की पीड़ा से गौतम हरगिज़ बुद्ध नहीं होते
यदि वैभव की चकाचौंध के मारे नहीं बदलते लोग ।
कर्म बड़ा तो जाति बड़ी है मानो ‘उदय’ हमारी बात
वरना तुम जैसे सडकों पर मिलते बहुत टहलते लोग ।