भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
					
										
					
					उफ़्फ़! और आगे क्यों  नहीं 
अरे-रे-रे, रुक क्यों गए
ज़मीन  पर  आँखें गड़ाए क्यों खडे खड़े  हो 
हाँ, हाँ, कोशिश करो
 
	
	

