भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"आदिल मंसूरी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Aadil rasheed (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: कल फूल के महकने की आवाज़ जब सुनी परबत का सीना चीर के नदी उछल पड़ी म…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
18:58, 18 अक्टूबर 2010 का अवतरण
कल फूल के महकने की आवाज़ जब सुनी परबत का सीना चीर के नदी उछल पड़ी
मुझ को अकेला छोड़ के तू तो चली गई महसूस हो रही है मुझे अब मेरी कमी
कुर्सी, पलंग, मेज़, क़ल्म और चांदनी तेरे बग़ैर रात हर एक शय उदास थी
सूरज के इन्तेक़ाम की ख़ूनी तरंग में यह सुबह जाने कितने सितारों को खा गई
आती हैं उसको देखने मौजें कुशां कुशां साहिल पे बाल खोले नहाती है चांदनी
दरया की तह में शीश नगर है बसा हुआ रहती है इसमे एक धनक-रंग जल परी