"मुल्क मेरा इन दिनों शहरीकरण की ओर है / जयकृष्ण राय तुषार" के अवतरणों में अंतर
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− | मुख्य सड़कों पर अंधेरे की भयावहता बढ़ी | + | मुख्य सड़कों पर अंधेरे की भयावहता बढ़ी |
− | जगमगाती रोशनी के बीच कारीडोर है | + | जगमगाती रोशनी के बीच कारीडोर है |
− | आत्महत्या पर किसानों की सदन में चुप्पियां | + | आत्महत्या पर किसानों की सदन में चुप्पियां |
− | मुल्क मेरा इन दिनों शहरीकरण की ओर है | + | मुल्क मेरा इन दिनों शहरीकरण की ओर है |
− | इन पतंगों का बहुत मुश्किल है उडना देर तक | + | इन पतंगों का बहुत मुश्किल है उडना देर तक |
− | छत किसी की, हाथ कोई और किसी की डोर है | + | छत किसी की, हाथ कोई और किसी की डोर है |
− | भ्रष्ट शासन तंत्र की नागिन बहुत लंबी हुई | + | भ्रष्ट शासन तंत्र की नागिन बहुत लंबी हुई |
− | है शरीके जंग कुछ तो नेवला या मोर है | + | है शरीके जंग कुछ तो नेवला या मोर है |
− | कठपुतलियां हैं वही बदले हुए इस मंच पर | + | कठपुतलियां हैं वही बदले हुए इस मंच पर |
− | देखकर यह माजरा दर्शक बेचारा बोर है | + | देखकर यह माजरा दर्शक बेचारा बोर है |
− | नाव का जलमग्न होना चक्रवातों के बिना | + | नाव का जलमग्न होना चक्रवातों के बिना |
− | है ये अंदेशा कि नाविक का हुनर कमजोर है | + | है ये अंदेशा कि नाविक का हुनर कमजोर है |
− | मौसमों ने कह दिया हालात सुधरे हैं मगर | + | मौसमों ने कह दिया हालात सुधरे हैं मगर |
− | शाम-धुंधली, दिन कलंकित, रक्तरंजित भोर है | + | शाम-धुंधली, दिन कलंकित, रक्तरंजित भोर है |
− | किस तरह सद्भावना के बीज का हो अंकुरण | + | किस तरह सद्भावना के बीज का हो अंकुरण |
− | एक है गूंगी पडोसन, दूसरी मुंहजोर है | + | एक है गूंगी पडोसन, दूसरी मुंहजोर है |
− | नाव पर चढ ते समय भी भीड में था शोरगुल | + | नाव पर चढ ते समय भी भीड में था शोरगुल |
− | अब जो चीखें आ रहीं वो डूबने का शोर है।< | + | अब जो चीखें आ रहीं वो डूबने का शोर है। |
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21:41, 18 अक्टूबर 2010 के समय का अवतरण
ये नहीं पूछो कहां, किस रंग का, किस ओर है
इस व्यवस्था के घने जंगल में आदमखोर है
मुख्य सड़कों पर अंधेरे की भयावहता बढ़ी
जगमगाती रोशनी के बीच कारीडोर है
आत्महत्या पर किसानों की सदन में चुप्पियां
मुल्क मेरा इन दिनों शहरीकरण की ओर है
इन पतंगों का बहुत मुश्किल है उडना देर तक
छत किसी की, हाथ कोई और किसी की डोर है
भ्रष्ट शासन तंत्र की नागिन बहुत लंबी हुई
है शरीके जंग कुछ तो नेवला या मोर है
कठपुतलियां हैं वही बदले हुए इस मंच पर
देखकर यह माजरा दर्शक बेचारा बोर है
नाव का जलमग्न होना चक्रवातों के बिना
है ये अंदेशा कि नाविक का हुनर कमजोर है
मौसमों ने कह दिया हालात सुधरे हैं मगर
शाम-धुंधली, दिन कलंकित, रक्तरंजित भोर है
किस तरह सद्भावना के बीज का हो अंकुरण
एक है गूंगी पडोसन, दूसरी मुंहजोर है
नाव पर चढ ते समय भी भीड में था शोरगुल
अब जो चीखें आ रहीं वो डूबने का शोर है।