"अतीत के साथ / मनोज श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर
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+ | मेरा मार्गदर्शन के लिए | ||
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+ | मैं यहां व्यग्र बैठा | ||
+ | तुम्हारी दुर्गम-दुर्भेद्य राहों पर | ||
+ | बेखटक दौड़ना चाहता हूँ, | ||
+ | मिलना-जुलना चाहता हूँ-- | ||
+ | विहारों, चैत्यों, समितियों | ||
+ | सम्मेलनों, समर-क्षेत्रों | ||
+ | सल्तनतों और मंत्रणा कक्षों में | ||
+ | तुम्हारे साथ जी रहे-- | ||
+ | भिक्षुओं, गुरुकुलीय राजकुंवरों | ||
+ | विषकन्याओं, राजगुरुओं | ||
+ | वानप्रस्थी महाराजाओं, सम्राटों | ||
+ | सुल्तानों, बादशाहों | ||
+ | वायसरायों, गवर्नर जनरलों से | ||
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+ | मेरी स्मृति सरिता में | ||
+ | नौका-विहार करते तुम्हारे लोगों से | ||
+ | मिल-बैठकर गप-शप करते हुए | ||
+ | मैं अपने जीवन से बाहर के | ||
+ | अनुभव बिन-बटोर लूँगा, | ||
+ | घुस जाऊंगा अपने पुरखों की उम्र में | ||
+ | और चुरा लाऊंगा | ||
+ | उनकी उपलब्धियों के दस्तावेज़, | ||
+ | उन्हें नत्थी कर दूंगा | ||
+ | अपनी विफलताओं की फाइल में | ||
+ | चुनिन्दा उपलब्धियों के रूप में | ||
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+ | आओ, मित्र! | ||
+ | मेरे ख्यालों के गुदगुदेदार फर्श पर | ||
+ | अपने लोगों के साथ, | ||
+ | मैं उन्हें तंग नहीं करूँगा | ||
+ | इस अशिष्ट दुनिया की | ||
+ | खुरदरी जमीन पर बुलाकर | ||
+ | और नहीं कहूँगा कि-- | ||
+ | वे तुम्हें निचाट में छोड़ | ||
+ | ढेरों बातें करें | ||
+ | मेरा मन बहलाएँ. |
16:57, 20 अक्टूबर 2010 के समय का अवतरण
अतीत के साथ
उठो. अतीत!
आरामगाह से बाहर आओ!
अब त्याग दो निद्रा
मैं तुम्हें कुछ पल की
मोहलत देता हूँ,
अंगड़ाइयों से बाहर निकल
तैनात हो जाओ
मेरा मार्गदर्शन के लिए
मैं यहां व्यग्र बैठा
तुम्हारी दुर्गम-दुर्भेद्य राहों पर
बेखटक दौड़ना चाहता हूँ,
मिलना-जुलना चाहता हूँ--
विहारों, चैत्यों, समितियों
सम्मेलनों, समर-क्षेत्रों
सल्तनतों और मंत्रणा कक्षों में
तुम्हारे साथ जी रहे--
भिक्षुओं, गुरुकुलीय राजकुंवरों
विषकन्याओं, राजगुरुओं
वानप्रस्थी महाराजाओं, सम्राटों
सुल्तानों, बादशाहों
वायसरायों, गवर्नर जनरलों से
मेरी स्मृति सरिता में
नौका-विहार करते तुम्हारे लोगों से
मिल-बैठकर गप-शप करते हुए
मैं अपने जीवन से बाहर के
अनुभव बिन-बटोर लूँगा,
घुस जाऊंगा अपने पुरखों की उम्र में
और चुरा लाऊंगा
उनकी उपलब्धियों के दस्तावेज़,
उन्हें नत्थी कर दूंगा
अपनी विफलताओं की फाइल में
चुनिन्दा उपलब्धियों के रूप में
आओ, मित्र!
मेरे ख्यालों के गुदगुदेदार फर्श पर
अपने लोगों के साथ,
मैं उन्हें तंग नहीं करूँगा
इस अशिष्ट दुनिया की
खुरदरी जमीन पर बुलाकर
और नहीं कहूँगा कि--
वे तुम्हें निचाट में छोड़
ढेरों बातें करें
मेरा मन बहलाएँ.