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जिन्दगी का हवे, ई राज बुझाते नइखे | जिन्दगी का हवे, ई राज बुझाते नइखे | ||
19:00, 20 अक्टूबर 2010 का अवतरण
बात पर बात होता बात ओराते नइखे
कवनो दिक्कत के समाधान भेंटाते नइखे
भोर के आस में जे बूढ़ भइल, सोचत बा
मर गइल का बा सुरुज रात ई जाते नइखे
लोग सिखले बा बजावे के सिरिफ ताली का
सामने जुल्म के अब मुठ्ठी बन्हाते नइखे
कान में खोंट भरल बा तबे तs केहू के
कवनो अलचार के आवाज़ सुनाते नइखे
ओद काठी बा, हवा तेज बा,किस्मत देखीं
तेल भरले बा, दिया-बाती बराते नइखे
मन के धृतराष्ट्र के आँखिन से सभे देखत बा
भीम असली ह कि लोहा के, चिन्हाते नइखे
बर्फ हऽ, भाप हऽ, पानी हऽ कि कुछुओ ना हऽ
जिन्दगी का हवे, ई राज बुझाते नइखे
दफ्न बा दिल में तजुर्बा त बहुत, ए ‘भावुक’
छंद के बंध में सब काहें समाते नइखे