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"करवाचौथ के व्रत / जयकृष्ण राय तुषार" के अवतरणों में अंतर
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09:38, 21 अक्टूबर 2010 के समय का अवतरण
कभी मूरत कभी सूरत से हमको प्यार होता है
इबादत में मुहब्बत का ही इक विस्तार होता है।
हम करवाचौथ के व्रत को मुकम्मल मान लेते हैं
जमीं के चांद को जब चांद का दीदार होता है।
पुजारिन बनके पतियों की उमर की कामना करतीं,
सुहागिन औरतों का इससे बेड़ा पार होता है।
तुम्हें ऐ चांद हिन्दू देख लें तो चौथ होता है,
मुसलमां देख लें तो ईद का त्यौहार होता है।
यही वो चांद है बच्चे जिसे मामा कहा करते,
हकीकत में मगर रिश्तों का भी आधार होता है।