भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कोई तो हा / ओम पुरोहित ‘कागद’" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: <poem>आं ईंटां रै ठीक बिचाळै पड़ी आ काळी माटी नीं राख है चूल्है री जकी …)
 
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
<poem>आं ईंटां रै
+
{{KKGlobal}}
 +
{{KKRachna
 +
|रचनाकार=ओम पुरोहित ‘कागद’
 +
|संग्रह=
 +
}}
 +
[[Category:मूल राजस्थानी भाषा]]
 +
{{KKCatKavita‎}}
 +
<Poem>
 +
आं ईंटां रै
 
ठीक बिचाळै
 
ठीक बिचाळै
 
पड़ी आ
 
पड़ी आ

01:56, 24 अक्टूबर 2010 के समय का अवतरण

आं ईंटां रै
ठीक बिचाळै
पड़ी आ
काळी माटी नीं
राख है चूल्है री
जकी ही काळीबंगा में
कदै’ई चेतन
चुल्लै माथै
कदै’ई तो
सीजतो हो
खदबद खीचड़ो
कोई तो हा हाथ
जका परोसता
घालता पळियै सूं घी
भेळा जीमता
टाबरां नै ।