"गाँव बिक रहा है / अमरजीत कौंके" के अवतरणों में अंतर
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12:18, 24 अक्टूबर 2010 के समय का अवतरण
1.
कुआँ
ऊपर से बन्द कर दिया है
कोई जानवर या कोई इन्सान
गिरने के भय से
पास खड़े नीम के पत्तों से
पानी गंदा होने के डर से
कुआँ ऊपर से बन्द कर दिया गया है
मैं छोटा-सा था
जब मेरे दादा
कुएँ में
खरबूजा फेंक कर
मुझे कहते -
कुएँ में झाँक कर देखो
खरबूज़ा डूबता है कि तैरता है
मेरी बाल-नज़रें
कुएँ में ख़रबूज़ा तलाशती
जो गेंद की तरह
कभी ऊपर कभी नीचे होता
गर्मियों के मौसम में
कुएँ के किनारे खड़े नीम पर
लड़कियाँ झूला डालतीं
बचनी की गुड्डी
मुझे गोद में बिठा कर
झूला-झूलती
मुझे अब भी उस की गोद का
निघ्घापन याद है
कुआँ तब कुआँ नहीं था
एक दुनियाँ होती थी पूरी की पूरी
उसके पास बने चौबच्चे में
मैं पानी भर कर कूदता
मेरी माँ उसमें मिट्टी से सने
मेरे गन्दे कपड़े धोती थी
कुआँ तब कुआँ नहीं था
उसके इर्द-गिर्द एक पूरा संसार था
पूरे का पूरा परिवार था
अब चौबच्चे में मिट्टी भर गई
जिसमें एक छोटा-सा पीपल
उग आया है
कुएँ को किसी ने बन्द कर दिया है
मैं बन्द कुएँ में देखना चाहता हूँ
क्या इसका पानी अभी भी
उतना ही निर्मल और साफ है
मैं अपने दादा को
याद करता हूँ
मैं खरबूज़े को फिर
कुएँ के पानी में
गेंद की तरह डूबता-तिरता
देखना चाहता हूँ ।
मूल पंजाबी से हिंदी में रूपांतर : स्वयं कवि द्वारा