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"गांधीजी के जन्म-दिवस पर / केदारनाथ अग्रवाल" के अवतरणों में अंतर
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तुमने देखा नय के ऊपर अनय विराजा | तुमने देखा नय के ऊपर अनय विराजा | ||
दहन-दमन का बजा रहा था दुर्मद बाजा | दहन-दमन का बजा रहा था दुर्मद बाजा | ||
− | जन-प्रतिजन आकुल रोता था | + | जन-प्रतिजन आकुल रोता था दलित दीन था |
+ | रूप-राग-जीवन मृणाल हो गया क्षीण था | ||
+ | सह न सके तुम असहनीय दुख-दव का दंशन | ||
+ | दिन प्रतिदिन का क्षण-प्रतिक्षण का कर्षण-घर्षण | ||
+ | तभी सत्य के परम अहिंसक तुम अवतारी | ||
+ | असहयोग ले बढ़े, प्रवंचक सत्ता हारी | ||
+ | शान्ति हुई संपन्न, क्रांतियाँ जहाँ न जीतीं | ||
+ | हुआ नया भिनसार-अमा की घड़ियाँ बीतीं | ||
+ | देश हुआ इस जन्म-दिवस पर अब फिर प्रमुदित | ||
+ | नहीं हरा सकता है कोई-हम हैं अविजित | ||
− | '''रचनाकाल: | + | '''रचनाकाल: २६-०९-१९६१''' |
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13:04, 24 अक्टूबर 2010 का अवतरण
आज तुम्हारा जन्म हुआ था इसी देश में
राष्ट्रपिता होने के पहले कठिन क्लेश में
तब यह भारत सिंह-दंत-नख से शासित था
परदेसी पामर प्रसाद से परितापित था
तुमने देखा नय के ऊपर अनय विराजा
दहन-दमन का बजा रहा था दुर्मद बाजा
जन-प्रतिजन आकुल रोता था दलित दीन था
रूप-राग-जीवन मृणाल हो गया क्षीण था
सह न सके तुम असहनीय दुख-दव का दंशन
दिन प्रतिदिन का क्षण-प्रतिक्षण का कर्षण-घर्षण
तभी सत्य के परम अहिंसक तुम अवतारी
असहयोग ले बढ़े, प्रवंचक सत्ता हारी
शान्ति हुई संपन्न, क्रांतियाँ जहाँ न जीतीं
हुआ नया भिनसार-अमा की घड़ियाँ बीतीं
देश हुआ इस जन्म-दिवस पर अब फिर प्रमुदित
नहीं हरा सकता है कोई-हम हैं अविजित
रचनाकाल: २६-०९-१९६१