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पुंज-पुंज संजीवन बरसे / केदारनाथ अग्रवाल
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गान चेतन में
तन में प्राण-प्रलोभन बरसे।
ताप हताहत, दाप दमनकर
चाप-चढ़ा-संताप शमन कर
भूमि भामिनी के श्लथ तन पर
पुंज पुंज संजीवन बरसे।
'''रचनाकाल: ०१-११-१९९६'''
</poem>
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