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"स्याह-सफ़ेद / जानकीवल्लभ शास्त्री" के अवतरणों में अंतर
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+ | कोई स्वप्न नहीं; पाँखों का- | ||
+ | गहन गगन से रहा न नता, | ||
+ | क्यों तुमने तारे तुड़वाए । | ||
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+ | मेरी बर्फ़ीली आहों का | ||
+ | बुझी धुआँती-सी चाहों का- | ||
+ | क्या था? घर में आग लगाकर | ||
+ | तुमने बाहर दिए जलाए ! | ||
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+ | स्याह-सफ़ेद डालकर साए | ||
+ | मेरा रंग पूछने आए ! | ||
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22:45, 25 अक्टूबर 2010 के समय का अवतरण
स्याह-सफ़ेद डालकर साए
मेरा रंग पूछने आए !
मैं अपने में कोरा-सादा
मेरा कोई नहीं इरादा
ठोकर मर-मारकर तुमने
बंजर उर में शूल उगाए ।
स्याह-सफ़ेद डालकर साए
मेरा रंग पूछने आए !
मेरी निंदियारी आँखों का-
कोई स्वप्न नहीं; पाँखों का-
गहन गगन से रहा न नता,
क्यों तुमने तारे तुड़वाए ।
स्याह-सफ़ेद डालकर साए
मेरा रंग पूछने आए !
मेरी बर्फ़ीली आहों का
बुझी धुआँती-सी चाहों का-
क्या था? घर में आग लगाकर
तुमने बाहर दिए जलाए !
स्याह-सफ़ेद डालकर साए
मेरा रंग पूछने आए !