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खूब पर्दा कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है कि चिलमन में छुपे बैठे हैं, <br>साफ छिपते भी नहींमगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है।<br>मैं तुझसे दूर कैसा हूँ, सामने आते भी नहीं| तू मुझसे दूर कैसी है,<br>ये तेरा दिल समझता है या मेरा दिल समझता है॥ <br><br>
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कविता कोश में [[दाग़ देहलवी कुमार विश्वास]]
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